पूर्व छात्र सम्मेलन का हुआ आयोजन

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कानपुर। डी पी एस कल्याणपुर में पूर्व छात्र सम्मेलन विद्यालय सभागार रिवेरा में आयोजन हुआ।विद्यालय की प्रधानाचार्या डॉ० ऋचा प्रकाश ने बताया कि इस सम्मेलन में देश-विदेश में उच्च पदासीन पूर्व छात्र,स्टार्टअप एंटरप्रेन्योर,चार्टर्ड अकाउंटेंट, इंजीनियर, वकील, कैरियर काउंसलर, डॉक्टर, खिलाड़ी, कलाकार, सभी उत्साह से सम्मिलित हुए। अनेक छात्र अपने परिवार के साथ आए, जिन्हें वे मीठी यादों से भरी अपनी कक्षाएं दिखाकर अपने शिक्षकों से सभी का परिचय करा रहे थे। कैंटीन में दोस्तों के बर्थडे पार्टी के किस्से सुना रहे थे।

इस अवसर पर स्टूडेंट काउंसिल ने पूर्व छात्रों से वृक्षारोपण करवाया एवं छात्रों के नाम लिखे कार्ड वहां पर लगा दिए ताकि वे जब भी विद्यालय आए उन्हें अपने नाम के साथ बड़े होते वृक्ष दिखें जिससे वे अपने विद्यालय से भावनात्मक रूप से जुड़ाव अनुभव कर सकें। विद्यालय की स्टूडेंट काउंसिल ने इस समागम में पूर्व छात्रों को अनेक खेल खिलवाएं जैसे – रस्साकसी, लेमन रेस, टग ऑफ वार, जिन्हें खेलते समय वह अपने स्कूली जीवन की, बचपन की यादों में खो गए। डाउन द नेमोरी लेन में पूर्व छात्रों ने अपनी पुरानी यादों व अनुभवों को लिखकर बोर्ड पर लगाया।
इस टैलेंट शो में छात्रों ने गीत,गजलें व कविताएं सुनाई व वर्तमान कार्य के मजेदार किररो भी अपने साथियों व अध्यापकों के साथ सांझा किए।
इस अवसर पर राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित एन० जी० ओ० दिव्यांग विकास संस्था जो मूक बधिर बच्चों के शिक्षा व रोज़गार परक शिक्षण के लिए समर्पित है। यह सम्मेलन डी०पी०एस० कल्याणपुर के संयुक्त तत्वावधान में वंचित वर्ग को सम्मानजनक रोजगार प्रशिक्षण देकर जीवन यापन के लिए प्रेरित करती है। जिनके द्वारा बनाए सामान को सराहना मिली एवं विद्यालय व पूर्व छात्रों ने इन छात्रों के उचित विकास के लिए अपना सहयोग देने की शुभ भावना प्रकट की।
इस अवसर पर प्रधानाचार्या डॉ. रिचा प्रकाश ने पत्रकारों को बताया कि एक बेहतर संवेदनशील व्यक्तित्व के लिए जिंदगी में अपनी जड़ों से जुड़े रहना अत्यंत आवश्यक है। अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता का भाव रखना एवं यह विश्वास मन में रखना कि आज हम जो भी हैं,अपने शिक्षकों के दिए गए ज्ञान के कारण ही हैं।
यह विनम्रता,अपनेपन के भाव के कारण ही पूर्व छात्र सम्मेलन में, छात्र आते हैं और अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। छात्रों को तब बहुत विशिष्ट अनुभव होता है,जब वर्षों बाद भी अध्यापक उनकी शरारतों और विशेषताओं के साथ उन्हें नाम से याद रखते हैं। इस तरह अनौपचारिक रूप से मिलने पर गुरु शिष्य के यह संबंध पारिवारिक संबंधों में बदल जाते है।


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