कानपुर। आईसीएआर भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान में 32वाँ स्थापना दिवस समारोह मनाया गया।
इस अवसर पर
प्रो.समशेर,कुलपति हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय, कानपुर मुख्य अतिथि और डॉ शिव कुमार,समन्वयक,दक्षिण एशिया और चीन (इकार्डा) एवं डॉ.शांतनु कुमार दुबे निदेशक, आईसीएआर-अटारी कानपुर विशिष्ट अतिथि थे।
मुख्य अतिथि प्रो.शमशेर ने संस्थान की उपलब्धियां/कार्यों को मुक्त कंठ से सराहना करते हुए बताया कि दलहन संस्थान अपने अनुसंधान कार्यों के माध्यम से देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है किंतु जलवायु परिवर्तन,बेमौसम बरसात,अत्यधिक गर्मी और कुपोषण हमारे वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय है आने वाला समय चुनौती पूर्ण है सभी कृषि वैज्ञानिकों को यह ध्यान में रखकर शोध करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि हम भविष्य में आईपीआर कानपुर के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और इसी क्रम में आज एचबीटीयू कानपुर और आईपीआर के मध्य समझौता ज्ञापन भी हस्ताक्षरित हुआ है I
संस्थान के निदेशक डॉ जी.पी.दीक्षित ने संस्थान की विभिन्न गतिविधियों/ उपलब्धियों पर जानकारी देते हुए बताया कि दलहन उत्पादन के क्षेत्र में हमारा देश आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है हम काबुली चना को एक्सपोर्ट करने की स्थिति में आ चुके हैं। दुनिया में दलहनी फसलों की जितनी भी प्रजातियां विकसित की जाती हैं उनमें से 70% प्रतिशत प्रजातियां आईपीआर द्वारा की जाती है हम किसानों के लिए कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं और हम किसानों के लिए ज्यादा से ज्यादा उन्नतशील बीज उपलब्ध करने की दिशा में सतत प्रयास कर रहे हैं। मिनी दाल और प्रोद्योगिकियों को और अपग्रेड किया गया है। प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप के महत्व को ध्यान में रखते हुए संस्थान द्वारा कई एमओयू साइन किए गए हैं।
इसके लिए सरकार से भी पूरा सहयोग मिल रहा है और आने वाले समय में दलहन उत्पादन में नए कीर्तिमान स्थापित करने की ओर अग्रसर हैं। पूर्व की अपेक्षा अब संस्थान का स्तर बहुत प्रोन्नत हो चुका है और वर्ष 2030 तक के अपेक्षित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनवरत रूप से प्रयास कर रहे हैं।
विशिष्ट अतिथि डॉ.शिवकुमार ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि गत वर्षों में आईपीआर द्वारा दलहनी फसलों की 80 प्रजातियां विकसित करना अत्यंत सराहनीय है,14 मिलियन टन से चलते हुए 26 मिलियन टन तक पहुंच गए हैं, मूंग की वैरायटी विराट अद्वितीय है। उन्होंने यह भी बताया कि आगे चुनौतियां तो है किंतु संस्थान उन चुनौतियों का सामना करने में पूर्णतया सक्षम है और हम सभी इस दिशा में काम भी कर रहे हैं, सरकार दालों के उत्पादन को लेकर के गंभीर है और हाल ही में अभी तीन हज़ार करोड रुपए का और आवंटन किया गया है I
विशिष्ट अतिथि डॉ. शांतनु कुमार दुबे निदेशक,
आईसीएआर-अटारी ने संस्थान की उपलब्धियों की प्रशंसा की एवँ संस्थान के वर्तमान निदेशक डॉ जी.पी.दीक्षित द्वारा किये गए कार्यों / उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा कि आपके कुशल नेतृत्व में संस्थान में शोध कार्य सुचारू रूप से चल रहा है, आवश्यकता इस बात की है कि हमारे किसानों को खेती के साथ-साथ उसके विपणन/ व्यवसाय की भी पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है। जिससे कि वह ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सके। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी होने की वजह से हमारे यहां दालों का विशेष महत्व है अतः इस पर ज्यादा से ज्यादा शोध कार्य किए जाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर संस्थान द्वारा प्रकाशित कुछ नवीन प्रकाशनों-आईआईपीआर ऐट ए ग्लान्स और टेक्निकल बुलेटिन -कन्सेर्वसन एग्रीकल्चर इन पल्स-बेस्ड क्रॉपिंग सिस्टम्स और हिंदी बुलेटिन दलहनी फसलों में गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन प्रोद्योगिकी का मुख्य अतिथि के द्वारा विमोचन भी किया गया। साथ ही प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आये प्रगतिशील किसान भाइयों को भी दलहनी खेती में उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित करते हुए उन्नतशील बीज उपलब्ध कराए गए। साथ ही इस अवसर पर मुख्य अतिथि द्वारा वृक्षारोपण भी किया गया। साथ ही इस अवसर पर वर्ष 2024 में,उत्कृष्ट कार्य करने हेतु डॉ योगेश कुमार प्रधान वैज्ञानिक को उत्कृष्ठ वैज्ञानिक पुरष्कार (वरिष्ठ श्रेणी), डॉ के.के.हाजरा वरिष्ठ वैज्ञानिक को उत्कृष्ठ वैज्ञानिक पुरष्कार (युवा श्रेणी),मलखान सिंह,वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी को उत्कृष्ठ तकनीकी अधिकारी,प्रशासनिक वर्ग में हर गोविंद राठौर,वैयक्तिक सहायक को सर्वोत्तम कार्यकर्ता अवार्ड से पुरष्कृत किया गया।
डॉ आर के मिश्र और टीम को शोध एवं विकास गतिविधियों के लिए उत्कृष्ठ टीम अवार्ड से सम्मानित किया गया।
धन्यवाद ज्ञापन डॉ शैलेश त्रिपाठी ,परियोजना समन्वयक (रबी) द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ राजकुमार मिश्र प्रधान वैज्ञानिक द्वारा किया गया।