शिक्षक हितों की खुली अवहेलना, प्रशासनिक संवेदनहीनता या भ्रष्टाचार का इशारा

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उन्नाव।जनपद में बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर उठते सवाल अब सिर्फ शिक्षक समाज तक सीमित नहीं रहे, बल्कि जनमानस और मीडिया के बीच भी चिंता का विषय बन चुके हैं। सेवानिवृत्त शिक्षकों के जीपीएफ फंड के भुगतान में की जा रही लापरवाही और चयन वेतनमान जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में महीनों से चल रही टालमटोल अब महज लापरवाही नहीं, बल्कि योजनाबद्ध अनदेखी और प्रशासनिक पंगुता का प्रतीक बन चुकी है।जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और वित्त एवं लेखाधिकारी द्वारा जारी ताजा पत्र में स्वीकार किया गया है कि मार्च 2025 तक कुल 62 शिक्षक सेवानिवृत्त हो चुके हैं, परंतु केवल 21 शिक्षकों को ही जीपीएफ फंड का भुगतान हो पाया है। 34 शिक्षक अभी भी फाइलों की धूल झाड़ते अपने अधिकारों के लिए भटक रहे हैं। यह स्थिति तब और भी अधिक शर्मनाक हो जाती है जब पता चलता है कि जिन 21 शिक्षकों को भुगतान हुआ है, उन्होंने अपने स्तर पर ‘जुगाड़’ कर भुगतान करवाया। क्या यह दर्शाता नहीं कि विभागीय प्रणाली पूरी तरह से भ्रष्टाचार की गिरफ़्त में है?क्या अब शिक्षकों को उनके जीवन भर की सेवाओं के बाद उनका हक पाने के लिए ‘सिफारिश’, ‘प्रभाव’ और ‘जुगाड़’ की सीढ़ियाँ चढ़नी होंगी? ये कैसा शासन है जहां कर्मठता की नहीं, पहुंच और पैरवी की कद्र है?चयन वेतनमान से संबंधित प्रकरण भी वर्षों से लंबित पड़े हैं। कोई समयसीमा तय नहीं, कोई कार्ययोजना नहीं—सिर्फ ‘फाइल चल रही है’, ‘शीघ्र समाधान होगा’ जैसे खोखले बहाने। यह सिर्फ कार्य में देरी नहीं है, यह शिक्षक सम्मान की हत्या है। क्या इससे यह नहीं प्रतीत होता है कि जानबूझकर फाइलें लटकाकर, प्रक्रियाएं पेचीदा बनाकर भ्रष्टाचार के लिए रास्ते तैयार किए जा रहे हैं।क्या जिला प्रशासन शिक्षक समाज को कमजोर समझ चुका है? क्या वे यह मान बैठे हैं कि शिक्षक सिर्फ पढ़ाने तक सीमित हैं और अपने हकों की लड़ाई लड़ने में असमर्थ हैं?इस पूरे मामले पर उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाई स्कूल (पू०मा०) शिक्षक संघ ने समय-समय पर पत्राचार कर गंभीरता दिखाई है। मीडिया ने भी निष्पक्षता से मुद्दा उठाया है। परंतु अफसोस की बात है कि इसके बावजूद भी शासन-प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की।
यह चुप्पी केवल लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत की बू देती है।
अब यह स्पष्ट हो चुका है कि यदि शिक्षक समाज को न्याय चाहिए, तो उन्हें एकजुट होकर सड़कों पर उतरना होगा। शिक्षक अब मौन नहीं रहेगा—अब संघर्ष आरंभ होगा।
_”जब अधिकारों की हत्या होने लगे, तो संघर्ष मौन नहीं, तेजस्वी होना_ चाहिए।”
कृष्ण शंकर मिश्रा
अध्यक्ष, उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाई स्कूल (पू०मा०) शिक्षक संघ


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