कानपुर।बाबा महाकालेश्वर मन्दिर के छब्बीसवें वार्षिकोत्सव पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस पर आचार्य अभिषेक शुक्ल ने कहा कि बुद्धिमान व्यक्ति को निरन्तर स्वसंतान को सद्गुणों,सद्व्यवहारों,उत्कृष्ट आचरणों से समन्वित करना चाहिए,क्योंकि शीलसम्पन्न तथा नीतिज्ञ मानव ही सर्वत्र सम्मानित होते है,उत्तम चरित्र के मानव का सर्वत्र समादर होता है और परोपकार सर्वोत्तम सद्गुण है,परन्तु परहित या परोपकार के सन्दर्भ में विचारणीय यह है कि दूसरों के अनैतिक या अनुचित स्वार्थों का साधन बनना अथवा पूर्ति करना परोपकार नहीं कहा जाएगा,वह धर्म न होकर के अधर्म होगा,जैसे परीक्षाकक्ष में परीक्षार्थी के द्वारा अनुकरण (नकल) करना अनुचित है यदि कोई वहां पर उसे अनुकरण की ओर प्रवृत्त करे या उसके अनुकरण का साधन बने यह परीक्षार्थी का हित या उपकार नहीं है अपितु उसका अहित तथा अधर्म है,अतः परोपकारी पुरुष या महिला को दूसरे का धर्मानुकूल हित या उपकार करना चाहिए किन्तु उसके पापपूर्ण स्वार्थों का साधक नहीं बनना चाहिए,प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य नरेन्द्र शास्त्री ने कपिल- देवहूति संवाद का वर्णन करते हुए कहा सत्पुरुषों कि संगति मोक्ष का द्वार है,सुजनों की संगति की इच्छा करना,दूसरों के गुणों में अनुराग,गुरुजनों के प्रति विनम्रता,विद्या में रुचि,लोक निन्दा का भय,भगवान् में भक्ति दुर्जनों की संगति का परित्याग,विपत्ति में धैर्य,उन्नति में क्षमाशील होना,यशप्राप्ति में अनुराग रखना,अतिथि सत्कार करना,उपकार करके मौन रहना,स्वयं पर किए गए उपकार को सार्वजनिकता में कहना,धन का गर्व न करना,पर गुणों की प्रशंसा करना यह सब सज्जनों के स्वाभाविक गुण हैं,इन सद्गुणों को जीवन में आचारित करने का प्रयास करना चाहिए,इस अवसर पर आयोजक सुधीर कुमार कानपुर नगर आयुक्त,प्रान्त प्रचारक श्रीराम जी,प्रान्त संघचालक भवानी भीखजी कानपुर प्रान्त,अजित श्रीवास्तव, अनीता अग्रवाल,विष्णु झा,मीना अग्रवाल आदि उपस्थित रहे।