उन्नाव।कल (आज़) गुरुवार को रात्रि 10:35 बजे भद्रा काल है। इसलिए भद्रा काल के बाद ही होलिका दहन उचित मुहूर्त है। जबकि अगले दिन शुक्रवार को आम के बौर का प्रासन, विभूति धारण और होली मिलन शुभ है।
ज्योतिष एवं संस्कृत भाषा के विद्वान बांगरमऊ क्षेत्र के ग्राम दौलतपुर निवासी आचार्य रामदेव तिवारी ने बताया कि शिशिर ऋतु गमन और बसंत ऋतु आगमन अर्थात संवत्सर को नवीन स्वरूप देने के लिए अपने अंदर समाहित ईर्ष्या, द्वेष व छल-कपट आदि बुराइयों को भस्म करना है और विभूति को भगवान शिव पर अर्पण कर स्वयं का अंग लेपन करना एवं सभी बंधु-बांधवों से गले मिलकर कटुता समाप्त करना ही वास्तविक होली त्योहार है। उन्होंने बताया कि पुराणों के अनुसार कुवृत्ति रूपी हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन के द्वारा परमात्मा के परमभक्त प्रहलाद को अग्नि में प्रवेश कराया। किंतु असद्वृत्ति जलकर भस्म हो गई और सद्वृत्ति रूपी प्रहलाद को आंच तक नहीं आई। इस दृष्टांत से समाज को सीख लेने की आवश्यकता है। उन्होंने लोगों से प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की अपील की।