रमजान के महीने में हर नेकी और इबादत का सवाब दूसरे महीनों के मुकाबले 70 गुना ज्यादा है

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उन्नाव।मुकद्दस माह रमजान सभी महीनों में अफजल और मुबारक महीना है। इसी माह में अल्लाह का कलाम कुरआन पाक नाजिल हुआ। रमजान माह का रोजा मजहबे इस्लाम का अहम रुक्न है। पाक माह रमजान का पहला अशरा दस दिन रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का है। बांगरमऊ नगर के समाजसेवी फजलुर्रहमान ने रमजान की फजीलत पर रोशनी डालते हुए बताया कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने मुकद्दस महीने रमजान के बारे में कहा है कि इस महीने में चार काम ज्यादा किया करो। इनमें कलमा तैयबा लाइलाहा इल्लललाह, असतगफार पढ़ना, जन्नत की तलब करना और दोजख की आग से पनाह मांगना। बताया कि इस महीने में अल्लाह पाक अपने बंदों के गुनाह माफ कर उनकी मगफिरत करता है और उन पर अपनी रहमतें नाजिल फरमाता है। मुसलमानों को इस पवित्र महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करनी चाहिए। बताया कि रमजान के महीने में हर नेकी और इबादत का सवाब दूसरे महीनों के मुकाबले 70 गुना ज्यादा है। रोजे का बदला खुद अल्लाह देता है। हदीस में अल्लाह का फरमान है कि बंदा रोजा सिर्फ मेरे लिए रखता है। सुबह से शाम तक भूखा, प्यासा रहता है। अपनी जिस्मानी जरूरतों पर काबू करता है। गुनाहों से परहेज करता है। मेरी खुशी हासिल करने के लिए वह सब्र और बर्दाश्त का मुजाहेरा करता है। इसलिए, रोजे का बदला और सवाब मैं खुद अपने हाथों से अपने महबूब बंदों को दूंगा। रमजान के सारे रोजे रखना हर मुसलमान मर्द, औरत, आकिल, बालिग जिसमें रोजा रखने की ताकत हो पर फर्ज है। जो शख्स किसी शरई वजह के बिना रोजे नहीं रखेगा, वह सख्त गुनाहगार होगा। इतना ही नहीं रोजा हमारे अंदर यतीमों, मोहताजों, गरीबों, जरूरतमंद लोगों और मुसीबतजदां इंसानों की मदद करने का जज़्बा पैदा करता है।


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