फतेहपुर। प्राइवेट हॉस्पिटलों को संचालित करवाने में ज्यादातर हाथ एंबुलेंस चालकों का होता है क्योंकि हॉस्पिटलों से मिलने वाली मोटी रकम से प्राइवेट एंबुलेंस चालक जीते हैं। रहीसो की जिंदगी, जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को अत्यधिक गंभीर समस्या होने पर डॉक्टरों द्वारा कानपुर रेफर या भर्ती कर दिया जाता है जिसने कुछ मरीज सरकारी एंबुलेंस का सहारा लेकर कानपुर जाते हैं व कुछ प्राइवेट एंबुलेंस का सहारा लेते हैं जिसके बाद प्राइवेट एंबुलेंस चालकों द्वारा मरीजों को ले जाते समय कम खर्च में अच्छा इलाज का झांसा देकर शहर के ही विभिन्न हॉस्पिटलों में कमीशन के लिए भर्ती कर दिया जाता है और मरीज के परिजनों से वार्तालाप करते रहते हैं कि आखिर मरीज को डिस्चार्ज करने के बाद कितने रूपयों का बिल बना जिससे वह
जिला अस्पताल में खड़ी एंबुलेंस का दृश्य।
प्राइवेट हॉस्पिटलों से अपना हिस्सा ले सकें। जानकारी के मुताबिक एंबुलेंस चालकों द्वारा ऐसे हॉस्पिटलों में ले जाया जाता है। जहां पर डिग्री वाले डॉक्टर की व्यवस्था न हो और इलाज के नाम पर मरीजों से अत्यधिक रुपया ऐठा जा सके, एक एंबुलेंस चालक ने नाम न छापने की शर्त पर यह बताया कि शांतीनगर के चर्चित दो हॉस्पिटलों में इन एंबुलेंस चालकों द्वारा जिला अस्पताल से रेफर मरीज व भर्ती मरीजों को इन्हीं हॉस्पिटलों में भर्ती कराने का कार्य किया जाता है। मरीज के भर्ती होते ही चालकों द्वारा हॉस्पिटल से टोकन के नाम पर 3500 रूपए ले लिए जाते हैं और जब तक मरीज अपने घर नहीं चला जाता तब तक मरीज पर एंबुलेंस चालक निगरानी भी रखते हैं जिसके बाद वह अस्पताल संचालकों से अपना कमीशन का रुपया ले सकें। जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल के इमरजेंसी व वार्ड में तैनात कुछ भ्रष्ट स्वास्थ्य कर्मियों की मिली भगत से चंद रुपयों के कारण कानपुर रेफर होने वाले व भर्ती मरीजों को इन एंबुलेंस चालकों के हाथ सौंप दिया जाता है जिससे उनका भी कमीशन मिल सके। वहीं जिला अस्पताल के सीएमएस द्वारा समय-समय पर एंबुलेंस चालकों को इमरजेंसी में एंबुलेंस लगाने के लिए मना भी किया गया इसके बावजूद इनके हौसले इतने बुलंद हैं कि अभी भी उनकी गाड़ियों पर रोक नहीं लग पा रही है। एम्बुलेंस चालकों के इस मकड़जाल से मरीजों को अब केवल जिलाधिकारी ही बचा सकती हैं।