प्रचार थमा, आखिर दिन प्रत्याशियों ने झोंकी ताकत नुक्कड़ सभाएं कीं, सीधे जनसंपर्क पर भी दिया ज्यादा ध्यान

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फतेहपुर । बीस मई को होने वाले लोक सभा चुनाव का प्रचार अभियान शनिवार की शाम पांच बजे थम गया। आखिरी दिन होने के कारण प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी। जगह जगह नुक्कड़ सभाओं का दौर देखने को मिला। तय वक्त निकलने के बाद उम्मीदवारों को चुनाव आयोग की गाइड लाइन के अनुरूप भाग्यविधाताओं के बीच दस्तक देते देखा गया। आखिरी दिन होने के कारण शनिवार चुनावी शोर सुनते बना। चुनाव कार्यालयों में सुबह से ही समर्थकों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। उम्मीदवार, एक एक मत की अहमियत से वाकिफ होने के कारण जनता जर्नादन के बीच पहुंचने की जल्दी में नजर आए। भाजपा उम्मीदवार व दो बार से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति की कई जगह नुक्कड़ सभाएं हुईं। सपा प्रत्याशी नरेश उत्तम पटेल का भी चुनाव प्रचार रौ में नजर आता रहा तो यही हाल बसपा उम्मीदवार डॉक्टर मनीष सचान के प्रचार का रहा। तीनों दलों को चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले एड़ी चोटी का जोर लगाए देखा गया। समर्थक भी पूरे जोश ओ खरोश के साथ अपने अपने उम्मीदवारों की दावेदारी को संबल देते नजर आए।

 

निर्दल उम्मीदवारों में भी दिखी गजब की तेजी
फतेहपुर। अपने पक्ष में माहौल बनाने को सुबह की पौ फटने के साथ निर्दल उम्मीदवार भी घरों से समर्थकों का हुजूम लेकर निकल पङे। प्रचार के आखिरी दौर में निर्दल चुनाव लङने वाले उम्मीदवारां को भी जनसंपर्क में ताकत झोंकते देखा गया। हालांकि इन प्रत्याशियों की चुनाव लङने की निष्ठा पर भी सवाल उठाए जाते रहे। कयास इस बात के लगते रहे कि कौन निर्दल उम्मीदवार, किस दलीय प्रत्याशी का तारणहार बनेगा। अभी तक इस चुनाव में भाजपा, सपा व बसपा उम्मीदवारों के साथ कुल मिलाकर 15 प्रत्याशी मैदान में है। दलीय प्रत्याशिता की बात करें तो अभी तक के चुनाव प्रचार में इन्हीं तीनों दलों का शोर सुनाई देता रहा है। निर्दल उम्मीदवारों को सिर्फ चुनाव लङने की खानापूर्ति करते देखा गया। चूंकि जिले में सोमवार को मतदान होना है। ऐसे में पांचवे चरण का प्रचार अभियान घड़ी के पांच बजाते ही थम गया। प्रचार के इस अंतिम दौर में दलीय प्रत्याशियों की मानिंद निर्दलीय उम्मीदवारों को भी जनता के बीच पहुंचकर सपोर्ट और वोट की गुजारिश करते सुना गया। यह दीगर बात रही कि इस प्रचार को राजनीति के जानकार महज मौके की राजनीति करार देते रहे। इनका मानना रहा कि अगर इक्का दुक्का निर्दल उम्मीदवारों को छोड दिया जाए तो बाकी दूसरों के लिए चुनाव लङ रहे हैं। जिनका मकसद जातीय समीकरणों को प्रभावित करते हुए चहेती सियासी पार्टी को संबल देना है।


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