कन्या भोज संस्कृति की रक्षा का प्रेरणा दिवस

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उन्नाव।कन्या-भोज संस्कृति की रक्षा का प्रेरणा दिवस भी है । इसे केवल रस्म मत बनाइये अथवा समझिये।कन्या-भोज संस्कृति की रक्षा का प्रेरणा दिवस भी है । इसे केवल रस्म मत बनाइये अथवा समझिये। यह बेबाक कलम है शिक्षाविद व चिंतक धीरेन्द्र कुमार शुक्ल की।उन्होंने “”कन्या_भोज””शीर्षक से लिख कर बताया कन्या भोज कराकर ढेर भर पुण्य कमा लिया । देवी जी के भक्त हैं । कन्याओं के चरण धो रहे हैं । पूजन कर रहे हैं । दही-जलेबी खिला रहे हैं । सिक्का-रुपया दान दे रहे हैं । भक्त कई दिन पहले से ही कन्याओं की संख्या जोड़ने मे जुटे थे । पाँच, सात, नौ की संख्या मे साल मे दो बार नवरात्र मे इन्हें कन्याएं ढूंढ़नी पड़ती हैं । बड़ा काम है । काश ! भक्त प्रवर के घर की एक कन्या भी इस अनुष्ठान मे हो पाती । घर मे कन्या नही है । केवल लड़के हैं । दूसरों के दरवाजे हाँथ जोड़ने गिड़गिड़ाने की नौबत विवाह मे नही आयेगी ।

मैं उनकी बात नही कर रहा हूँ जिनके घरों मे कन्याएं थी । विदा होकर ससुराल चली गयी । जिनके घर मे कन्या का जन्म नही हुआ, वे भी मेरी चेतना का विषय नही हैं । ऐसे, सैकड़ों परिवार हैं जो चाहते हैं कि घर मे एक कन्या होती । जिनके घर मे लगातार कई कन्याओं का जन्म हुआ । वह दुखी नही हैं । उत्साह और प्रशन्नता उत्सव मना रहे हैं ।
इसी बीच शुभ-चिन्तक मिल जाते हैं । क्या फिर बिटिया हो गई । भगवान की लीला । आज वही दरवाजे खड़े हैं । सुबह जल्दी तैयार कर देना । हम कन्या-भोज मुहूर्त से कराते हैं । ऐसे कई लोग होते हैं जिन्हें कन्या के जन्म का मुहूर्त दुखी करता है ।कन्या-भोज का मुहूर्त पुण्य देगा । भ्रूण हत्याओं पर रोक है । इसके बावजूद?इस स्तर के लोगों का भी अभाव नही है, जो घर मे कन्या का जन्म होने पर असहज हो जाते हैं । विज्ञान भी नही मानते हैं । बहु के लिए अप्रिय शब्द तक प्रयुक्त करते हैं । आज कन्याओं के चरणों से पुण्य अर्जित करके ही मानेगे । जब पुत्र का विवाह करते हैं तब दहेज कतई नही मांगते हैं । केवल यह बताते हैं कि जो इसके पहले आये थे वह कितना दे रहे थे । कन्याओं के जन्म के बाद जिनका चेहरा बुझ जाता है, उनमे महिलाएं भी कम नही होती हैं । वह यह भी भूल जाती है कि कन्या से मेरी पहचान यहां तक पहुंची है । एक-एक कन्या कई जगह आदर से बुलाई जाती है । कभी-कभी तो वह मुह भी नही खोलती । मुह मे समझाकर एक टुकड़ा मिठाई रखकर और चरण-वंदन करके भक्त प्रवर को संतोष करना पड़ता है । घर मे कन्या का जन्म न होने पाए । केवल बाहर से कन्याएं जोड़कर पुण्य की गठरी घर पर आ जाए । ऐसे लोगों की कमी नही है । कन्या सृष्टि का मूल आधार है । सभी सम्बन्धों की कारक भी कन्या है । युग बदल रहा है । कन्याएं आगे-बहुत आगे ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति के क्षेत्रों मे खड़ी हैं । कन्या-भोज प्रतीकात्मक संदेश है । समग्र रूप से कन्याओं का प्रतिपल ध्यान रखना, संस्कार तथा उच्च शिक्षा के अवसर देना जरूरी है । पहले से ही अर्थ-पिशाच हैं फिर भी बेटे के विवाह मे सात्विक रूप से धन की भारी चाह रखने मे संकोच नही है ।इनको अहसास तक नही है कि कन्याओं की संख्या यदि घट गयी तो भविष्य मे पुत्रों के विवाह के लिए दहेज़ की कुप्रथा पूरी तरह उलट सकती है । अदभुत भक्त हैं । पूजा-पाठ कीर्तन …. मे जुटे हैं । मोक्ष के लिए जगह-जगह डटे हैं । पुत्री और पुत्र बहु मे विभेद करना भी कई लोग व्यावहारिक अधिकार समझ बैठे हैं । अकर्मों से मुक्त भी नही हो पा रहे हैं । सच्ची मानवता ही धर्म है । यह विषय गौड़ होता जा रहा है । कन्या पूजन और भोज कराने का क्या यह आशय नही है कि दादी, नानी, माँ, चाची, बुआ, बहन, भाभी, पत्नी, पुत्र-बहु, बेटी, पौत्री, नातिन, भांजी सभी सम्बन्ध हमारे हृदय स्थल पर स्वाभिमान से हमेशा प्रतिष्ठित रहें । धार्मिक मान्यताएं और स्वस्थ परम्पराएं तो इन्ही देवियों से सुरक्षित हैं । कन्या-भोज संस्कृति की रक्षा का प्रेरणा दिवस भी है । इसे केवल रस्म मत बनाइये अथवा समझिये ।


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