नोनारा का लगान बन्दी आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास

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प्रमुख संवाददाता अजहर उद्दीन बिन्दकी,फतेहपुर।1931 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के बिंदकी तहसील में स्थित गांधी मैदान में महात्मा गांधी जी आए और अपने भाषण में आगे से अंग्रेजों को लगान न देने का आवाहन किया, जिसका प्रभाव बिंदकी तहसील में स्थित ग्राम-नोनारा के लोगों पर अत्यधिक पड़ा और सामूहिक रूप से जहानाबाद निवासी अंग्रेज परस्त जमीदार इब्राहीम को लगान देने से मना कर दिया। जिसकी सूचना जमीदार के लठैतों द्वारा तहसीलदार के पास खजुहा भेजी गई। जिसके पश्चात अंग्रेज परस्त तहसीलदार अवध बिहारी लाल श्रीवास्तव स्वयं पुलिस बल लेकर नोनारा गांव में पहुंचकर लगान वसूलने का कार्य गांव के उत्तरी पश्चिमी कोने में स्थित इमली के पेड़ के नीचे चबूतरे में सजायाफ्ता व्यक्ति हुसैनी बेहना से चारपाई मंगवा कर बैठ गया। और ग्राम नोनारा के पटवारी छोटेलाल कायस्थ को भेजकर ग्राम वासियों को बुलवाया जिसमें सर्वप्रथम गांव के किसान छोटे लाल,भवानीदीन व महादेव मिश्र पहुंचे। तो इनसे लगान देने की बात कही गई लेकिन इन लोगों ने महात्मा गांधी जी द्वारा लगान न देने का आवाहन की बात कहकर लगान देने से मना कर दिया,जिससे तहसीलदार आग बबूला हो गए और इन लोगों के शरीर के कपड़ों को उतरवाकर नंगे बदन पर कोड़ों की पिटाई शुरू कर दहशत फैलाना शुरू कर दिया इधर किसी ने दौड़कर तत्कालीन ग्राम नोनारा के मुखिया शिवनारायण तिवारी को बताई तो वह अपने एक भाई रामनारायण व दो पुत्र दुलारे तिवारी व प्यारेलाल तिवारी के साथ मौके पर पहुंच गए और तहसीलदार से कहां सुनी प्रारंभ हो गई और आपस में गाली गलौज शुरू हो गया पहले से पीटे जा रहे लोगों की दुर्दशा देखकर इन लोगों का पारा और चढ़ गया। गांव के लोगों की भीड़ लगातार बढ़ रही थी इसी बीच शिवनारायण के पुत्र दुलारे लाल तिवारी ने गुस्से में जाकर तहसीलदार को गिरा कर जूतों से पीटकर मरणासन्न कर दिया और इसके बाद लाठी-डंडे से पीट-पीटकर मार डाला पुलिस वालों के ऊपर गांव वालों ने हमला बोल दिया जिससे उन्होंने गोली चला दी और मौके पर खड़े मुखिया श्री शिवनारायण तिवारी को गोली लग गई और वह घायल होकर गिर पड़े अन्य लोगों को भी छर्रे लगे। मुखिया शिवनारायण के पुत्र व भाई घायल शिवनारायण तिवारी को लादकर अपने घर ले आए ।इधर घटना की सूचना मिलते ही जहानाबाद पुलिस व प्रशासन में तहलका मच गया पुलिस प्रशासन ने भारी दल-बल के साथ नोनारा गांव को चारों ओर से घेर लिया और अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया गांव में जो भी मिला मारना पीटना बलात्कार करना,धन,पैसा,जेवर आदि को लूटना प्रारंभ कर दिया जिससे डरवश गांव के सभी लोग भाग कर बाहर चले गए कुछ लोग फसलों में जाकर छुप गए।इधर शिवनारायण तिवारी के घायल होने के कारण उनके 2 पुत्र व भाई भाग नहीं पाए और मौके पर ही सभी गिरफ्तार हो गए ।पुलिस घायल शिवनारायण तिवारी को गांव के प्राथमिक पाठशाला में बने पुलिस के कैंप में ले गए जिसमें पुलिस को दिए बयान में उन्होंने तहसीलदार को मारने का इकबालिया बयान दे दिया। जिससे सभी अन्य लोग मजिस्ट्रेट के सामने बच जाते,पुलिस ने मुखिया शिव नारायण तिवारी को इलाज करवाने के बजाय षड्यंत्र करके जहर देकर मार दिया ।इस केस में दुलारे लाल तिवारी,प्यारे लाल तिवारी,राम नारायण तिवारी समेत 71 लोगों के खिलाफ तहसीलदार हत्याकांड का मुकदमा चला 19 व्यक्ति साक्ष्य के अभाव में छूट गए थे ग्रामीण भारत की दुर्दशा हो गई गांव वीरान हो गया,आसपास के गांव के लोगों ने मिलकर लोगों की फसलें काटी और गल्ला पहचान पहचान कर उनके घर घर पहुंचाया।क्रांतिकारी गुरु प्रसाद पांडे अपने दल बल के साथ नोनारा गांव पहुंचकर तन मन धन से लोगों की मदद व सेवा की।

प्रदेश की कांग्रेस कमेटी ने ग्राम नोनारा का निरीक्षण करने के लिए विजयलक्ष्मी पंडित,मोहन लाल गौतम,एडवोकेट,एडवोकेट बैजनाथ दुबे ने की थी सेशन जज ने दुलारे तिवारी छोटे लाल कुर्मी को मृत्युदण्ड व 18 व्यक्तियों को आजीवन कारावास से शेष 14 व्यक्ति साक्ष्य के अभाव में बरी हुए हाईकोर्ट की अपील की नि:शुल्क पैरवी पंडित सुंदरलाल बैरिस्टर ने की थी। जिसमें दुलारे लाल तिवारी की मृत्यु दंड की सजा बहाल रखी और छोटेलाल कुर्मी के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया बाकी की सजा पूर्व की भांति रही दिनांक 03/04 /1932 को दुलारे लाल तिवारी को 14 महीने की तन्हाई की सजा के बाद फांसी की सजा,इलाहाबाद के मलाका जेल में दे दी गई। छोटेलाल की जेल में बीमारी से 1 वर्ष के अंदर मृत्यु हो गई उपरोक्त घटना में सबसे अधिक नुकसान हुआ शिवनारायण तिवारी व उनके परिवार का। पूरे परिवार में केवल 2 महिलाएं थी।जिसमें दुलारे लाल तिवारी की फांसी के समय उम्र 24 वर्ष की थी और पत्नी गर्भवती जिसके बाद में पुत्री के रूप में जन्म हुआ। दूसरे आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्यारेलाल तिवारी पुत्र शिवनारायण की उम्र 16 वर्ष की थी उनका विवाह हो चुका था और उनके कोई संतान नहीं हुई ,दोनों महिलाएं अपने मायके में रहीं। इधर अमर शहीद शिव नारायण मुखिया की समस्त 40 बीघा जमीन जहानाबाद निवासी जमीदार इब्राहीम व अंग्रेज परस्त अधिकारियों ने मिलकर जब्त कर ली। जो आज तक वापस नहीं मिली है।

1935 अधिनियम के लागू होने के पश्चात ब्रिटिश हुकूमत द्वारा प्रांतीय सत्ता का हस्तांतरण होने के बाद उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत के सहयोग वह क्रांतिकारी शिव दयाल उपाध्याय,विधायक गुरु प्रसाद पांडे,प्रेमदत्त तिवारी एडवोकेट आदि ने पैरवी करके उक्त नोनारा के सभी आजीवन कारावास की सजा भोग रहे व्यक्तियों की सजा माफ सन 1939 में करवा दी । जिसके पश्चात लगभग 7 वर्ष के बाद शिवनारायण के परिवार के सदस्य छूटे और तब जाकर घर में दीपक जला। इसके पश्चात इस परिवार की संघर्षपूर्ण स्थिति रही और घोर गरीबी में परिवार के सभी सदस्यों का जीवन व्यतीत हुआ।


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