हरिशंकर शर्मा
कानपुर। पूरे भारत में नवरात्रि का त्योहार बेहद खास माना जाता हैद्य नवरात्रि के नौ दिनों में माता के 9 रूपों की पूजा की जाती हैद्य इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से होने जा रही है और समापन 24 अक्टूबर को होगाद्य हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है।
शारदीय नवरात्रि की तारीख और शुभ मुहूर्त
इस साल शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर, रविवार से शुरू होने जा रहे हैं। नवरात्रि की अष्टमी 22 अक्टूबर को और नवमी 23 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस नौ दिन के उत्सव का समापन 24 अक्टूबर यानी दशहरे के दिन होगा। शारदीय नवरात्रि सबसे बड़ी नवरात्रि में से मानी जाती हैद्य शारदीय नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है जिसका एक मुहूर्त होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि 14 अक्टूबर को रात 11 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और प्रतिपदा तिथि का समापन 15 अक्टूबर को रात 12 बजकर 32 मिनट पर होगाद्य उदयातिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि इस बार 15 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी।
नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य नीरज शर्मा के अनुसार शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को यानी पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगाद्य ऐसे में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त इस साल 48 मिनट ही रहेगा।
घटस्थापना तिथि- रविवार 15 अक्टूबर 2023
घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11ः48 मिनट से दोपहर 12ः36 मिनट तक इस वर्ष मां हाथी पर सवार होकर आ रही हैं ऐसे में इस बात के प्रबल संकेत मिल रहे हैं कि, इससे सर्वत्र सुख संपन्नता बढ़ेगीद्य इसके साथ ही देश भर में शांति के लिए किए जा रहे प्रयासों में सफलता मिलेगीद्य यानी कि पूरे देश के लिए यह नवरात्रि शुभ साबित होने वाली है।
घटस्थापना या कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
सप्त धान्य (7 तरह के अनाज), मिट्टी का एक बर्तन, मिट्टी, कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल), पत्ते (आम या अशोक के), सुपारी, जटा वाला नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, पुष्प।
शारदीय नवरात्रि में घटस्थापना की विधि
नवरात्रि के पहले दिन व्रती द्वारा व्रत का संकल्प लिया जाता हैद्य इस दिन लोग अपने सामर्थ्य अनुसार 2, 3 या पूरे 9 दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं। संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी में जौ बोया जाता है और इस वेदी को कलश पर स्थापित किया जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक काम से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान बताया गया है और कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है इसलिए इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। कलश को गंगाजल से साफ की गई जगह पर रख दें। इसके बाद देवी-देवताओं का आवाहन करें. कलश में सात तरह के अनाज, कुछ सिक्के और मिट्टी भी रखकर कलश को पांच तरह के पत्तों से सजा लें। इस कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें इस दौरान अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करें। अंत में देवी मां की आरती करें और प्रसाद को सभी लोगों में बाट दें।