एलौपैथी से आयुर्वेद की तरफ बढ़े कदम, 223 में 113 पर किया गया शोध सुखद

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हरिशंकर शर्मा। नव हिन्दुस्तान पत्रिका
– 250 मरीजो में 223 मरीजो पर किया गया परिक्षण, 113 का परिणाम गया बेहतर
– इंटरनेशन स्तर पर भी इस शोध का हो चुका है प्रकाश- प्राचार्य
कानपुर। एलोपैथिक ने आयुर्वेद पद्धति की तरफ एक बार फिर से रूख किया है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज के बाल रोग विभागध्यक्ष डा0 यशवंत राव द्वारा शुरू की गई क्रोनिक एलर्जी राइटेनिक्स पर प्रयोग अब तक सफल रहा है। इस शोध को पूरी तरह वैज्ञानिक प्रमाणता के लिए अभी और समय लग सकता है,लेकिन अगर सब ठीक रहा तो एलर्जी को जड से खत्म करने में आयुर्वेद बहुत सहायक सि; हो सकता है। इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर कालेज प्राचार्य डा0 संजय काला ने एक प्रेसवार्ता का आयोजन किया और किए जा रहे शोध और उसके परिणाम के बारे में गहनता से जानकारी दी।
प्राचार्य कार्यालय के सभागार में आयेाजित एक प्रेसवार्ता का आयोजन कर प्राचार्य डा0 संजय काला ने बताया कि बच्चो से लेकर बडो तक सबसे एलर्जी जरूर पायी जाती है। इसी एलर्जी को जड से खत्म करने के लिए पीड्रियाट्रिक विभागध्यक्ष डा0 यशवंत राव के पास रूद्रपुर से वैद्य डा0 बी प्रकाश का फोन आया और उन्होंने एलर्जी को लेकर चर्चा की और उन्हें इस शोध के बारे में अवगत कराया। जिस पर डा0 यशवंत राव ने प्राचार्य की सहमति से क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया से पंजीकृत करा अनुमति ली और 22 जुलाई 2023 से दिसम्बर 2023 तक मरीजो पर शोध कर इसका परिणाम परखा गया। इसके लिए 250 मरीजो को चुना गया। इन मरीजो को दो भागो में रखा गया जिसमें 110 मरीज एलोपैथिक पद्धति प्रणाली के लिए और 113 मरीज आयुर्वेद पद्धति प्रणाली के लिए उन पर परीक्षण किया। प्राचार्य डा0 संजय काला ने बताया कि 110 मरीजो को एलोपैथी दवा लिवोसिट्रीजन 2.5 मिलीग्राम और मोंटील्यूकास्ट 4 मिलीग्राम दी गई तो वही 113 मरीजो को आयुर्वेद से बनी दवा दी गई जिसमें 20 जडी बूटी और बहुत कम मात्रा में आयरन भस्म युक्त इम्बो नाम की दवा की 60 ग्राम डोज दी गई जिसको 28 दिनो तक देकर देखा गया और उसका परिणाम एलोपैथी के मुकाबले आयुर्वेद में काफी अच्छा देखने को मिला। एक्यूट एलर्जी में तो एलोपैथी दवा देकर उसे रोका जा सकता है ,लेकिन आयुर्वेद पद्धति सीधे मर्ज की जडो पर असर कर रही है जिससे मरीज को काफी फायदा मिला। उन्होंने बताया कि एलर्जी में मरीज के खून में आईजीई का लेबल बढ़ जाता है जिससे उसको हमेशा कुछ न कुछ लगा ही रहता है। अगर समय रहते इस पर काबू न किया जाए तो आगे चल कर यही सीओपीडी को बढ़ा देता है जिससे लग्ंस और अस्थमा जैसी बीमारियों का रूप ले लेता है। प्राचार्य डा0 संजय काला ने बताया कि अभी शोध का कार्य चल रहा है जिसमें समय लगेगा,लेकिन अगर सब कुछ ठीक रहा तो इस पद्धति से क्रोनिक एलर्जी राइटेनिक्स को जड से समाप्त किया जा सकता है। इस मौके पर मुख्य रूप से कालेज मीडिया प्रभारी डा0 सीमा द्विवेदी, मानसिक रोग विभागध्यक्ष डा0 धनंनजय चौधरी, माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डा0 विकास कुमार व सभी संकाय के मीडिया प्रभारी मौजूद रहे।

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देश की 30 प्रतिशत आबादी झेल रही है एलर्जी का दंश
प्राचार्य डा0 संजय काला ने बताया कि देश की 30 प्रतिशत आबादी एलर्जी का दशं झेल रही है। इस एलर्जी में आंखो से पानी आना, नाक से पानी बहना व बुखार जैसी समस्या बनी रहती है। इम्बो दवा प्रणाली का शोध काफी कारगर साबित हुई है जिससे आने वाले समय में एलर्जी को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है।

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आयुर्वेद का सबसे पुराना सम्बंध चरक संहिता से ही है। चरक संहिता के माध्यम से कई बीमारियों को जड़ से खत्म करनी का वर्षो पुरानी पद्धति चली आ रही है जिसकी तरफ एक बार फिर से रूख किया गया है,लेकिन जब तक इसकी वैज्ञानिक प्रमाणता नही मिल जाती जब तक किसी भी शोध को पूर्ण रूप से सफल नही माना जा सकता है। हांलकि चरक संहिता पद्धति द्वारा आयुर्वेदिक पद्धति पर शोध जारी है और अभी तक इसका परिणाम सुखद रहा है।


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