उन्नाव ।जो व्यक्ति अपने जीवन को मानवता की सेवा में समर्पित कर दे वही सच्चा सेवक है। आज ज्यादातर लोग भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन जब वे इस दुनिया से विदा होते हैं तो वे अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा पाते, उनकी सारी कमाई यहीं रह जाती है। अगर वे कोई चीज अपने साथ ले जाते हैं तो वह है उनके अच्छे कर्म और लोगों की दुआएं।
तहसील क्षेत्र के ग्राम इस्माइलपुर आंबापारा (कुर्मिनखेड़ा) निवासी उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ के वरिष्ठ यश भारती अधिवक्ता प्रमुख समाजसेवी फारूक अहमद एडवोकेट ने आज एक प्रेस वार्ता में चर्चा करते हुए कहा कि मनुष्य का एक ही कर्म व धर्म है और वह है मानवता। उन्होंने कहा कि हम इस दुनिया में इंसान बनकर आए हैं तो सिर्फ इसलिए कि हम इबादत करने के साथ-साथ मानव सेवा कर सकें। पूरे विश्व में ईश्वर ने हम सभी को एक सा बनाया है। फर्क बस स्थान और जलवायु के हिसाब से हमारा रंग-रूप, खान-पान और जिंदगी जीने का अलग-अलग तरीका है। आत्मभाव से हर मनुष्य एक समान है। हम सब एक ही मिट्टी के बने हैं और एक जैसे ही तत्व सबके भीतर हैं। जिस दिन यह सच्ची बात हमारे मन में स्थापित हो जाएगी तो फिर सभी भेद-भाव और ऊँच-नीच मिट जाएंगे, और तब हम इंसानियत की राह पर अग्रसर होकर भाईचारा स्थापित करने लगेंगे। दुनिया का कोई भी धर्म आपस में बैर रखना नहीं सिखाता। सभी एक ही संदेश देते हैं कि मानवता की सेवा ही सच्चे अर्थों में सबसे बड़ा धर्म है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हमने मानवता को बुलाकर अपने को जाति- धर्म ,गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया है, और ईश्वर को अलग-अलग बांट दिया है। धर्म मनुष्य में मानवीय गुणों के विचार का स्रोत है, जिसके आचरण से वह अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। मानवता के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि सेवा भाव तो मनुष्य के आचरण में होना चाहिए। जो गुण व भाव मनुष्य के आचरण में न आए उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है। मालूम हो कि फारूक अहमद एडवोकेट ने बांगरमऊ क्षेत्र के साथ-साथ उन्नाव जनपद और प्रदेश में तमाम ऐतिहासिक कार्य जनहित याचिका के माध्यम से कराए हैं जिनको देखते हुए पिछली सरकार द्वारा उनको यश भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया था। उन्होंने बताया कि मैंने हमेशा बिना भेदभाव के सामाजिक कार्य किए हैं और आगे भी करता रहूंगा।