सज्जन पुरुषों की रक्षा, पाप कर्मों को नष्ट कर धर्म की स्थापना के लिए भगवान जन्म नहीं लेते प्रकट होते हैं नीरज स्वरूप ब्रम्हाचारी  

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उन्नाव।भगवान श्री कृष्ण ने सम्पूर्ण मानव जाति को यह आश्वासन देते हुए कहा है कि जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात्‌ साकार रूप में लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। सज्जन पुरुषों की रक्षार्थ, पाप कर्म करने वालों को नष्ट करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में अर्थात् हर समय प्रकट होता हूँ।
उक्त बातें कस्बा फतेहपुर चौरासी के मोहल्ला गांधीनगर में चल रही श्री मद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथा वाचक मां भुवनेश्वरी पीठ के पीठाधीश्वर नीरज स्वरूप ब्रह्मचारी ने श्री कृष्ण के जन्म की संगीतमयी कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान नें अवतार लिया और अवतार का अर्थ है–उतरना। सच्चिदानन्द स्थिति से जब परमात्मा भक्तों के प्रेम के कारण माया के क्षेत्र में उतर आते हैं तब इसे ‘अवतार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में भगवान जब मानवता के अंदर प्रत्यक्ष रूप में उतर आते हैं और मनुष्य के ढाँचे को पहन लेते हैं तब वह अवतार कहलाता है।अजन्मा भगवान श्रीकृष्ण क्या हैं, कैसे हैं, क्यों प्रकट होते हैं–इसका रहस्य उनके सिवा और कोई नहीं जानता। वे स्वयं कहते हैं–‘मेरे प्राकट्य के रहस्य को देवता और महर्षिगण कोई नहीं जानते।’उन्होंने कहा कि प्रकृति में जब अधोगुण बढ़ जाते हैं, मानव आसुरी और राक्षसी भावों से आक्रान्त हो जाता है, उसमें अहंता-ममता, कामना-वासना, स्पृहा-आसक्ति बुरी तरह बढ़ने लगती है, चोरी, डकैती, लूट, हिंसा छल, ठगी–किसी भी उपाय से वह भोग (अर्थ, अधिकार, पद, मान, शरीर का आराम) प्राप्त करने में तत्पर हो जाता है, राजाओं और शासकों के रूप में घोर अनीतिपरायण, स्वेच्छाचारी, नीच-स्वार्थरस से पूर्ण असुरों का आधिपत्य हो जाता है।और पवित्र प्रेम की जगह काम-लोलुपता बढ़ने लगती है, ईश्वर को मानने वाले साधु चरित्र पुरुषों पर अत्याचार होने लगते हैं, सच्चे साधकों को पग-पग पर अपमानित व लज्जित होकर पद-पद पर विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है, मनुष्य विनाश में विकास देखने लगता है, इस प्रकार साधु हृदय मानवों की करुण पुकार जब चरम सीमा पर पहुँच जाती है तब भगवान का अवतार होता है।कथा वाचक नें कहा कि आज श्री कृष्ण जन्मोत्सव पर परमसत्ता के इस सङ्कल्प को स्वयं में अवतरित करें, जो हमारी समस्त बुराइयों को नष्ट कर दे।कथा के तीसरे दिन आचार्य अरविंद द्विवेदी एवं नैमिश निवासी आचार्य स्वतन्त्र मिश्र ने वैदिक मंत्रोचार से पूजन कार्य संपन्न कराया।इस दौरान परीक्षित संतकुमार त्रिवेदी, पण्डित चंद्रप्रकाश,मुन्ना त्रिवेदी,बबलू त्रिवेदी,रजनीश त्रिवेदी,मनाली,आलोक,पवन पांडे,संतोष,लकी,रजनीश,सचिन,अवनीश कुमार,मधुर त्रिवेदी,अंकित, सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं मौजूद रहे।


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