उन्नाव।अब्दुल माजिद खान कोषाध्यक्ष लखनऊ महानगर भारतीय जनता पार्टी ने समस्त देशवासियों को ईद उल फितर की मुबारकबाद देते हुए बताया कि इस्लाम में दो ईदें हैं एक ईद-उल-फ़ित्र और दूसरी ईद-उल-जुहा दो मुख्य मुस्लिम त्योहारों में से एक ईद-उल-फ़ित्र रमज़ान के पवित्र महीने के समापन का प्रतीक है, जिसके दौरान मुसलमान रोज़ सूर्योदय से शाम तक रोज़े रखते हैं। अलसुबह सेहरी होती है और रोजा शुरू हो जाता है। यह ईद रमज़ान के रोज़ों और इबादत के बाद खुशियों और मोहब्बत का पैगाम लाती है। जहां रमज़ान में संयम, सब्र और भूख प्यास के एहसास के माध्यम से समानता का संदेश मिलता है तो दान पुण्य के माध्यम से सबको साथ ले कर चलने का संदेश मिलता है।
अब्दुल माजिद खान जी का कहना है कि फ़ित्रा अनिवार्य है, जो ईद की नमाज से पहले इकट्ठा किया जाता है और वंचितों को दिया जाता है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-फित्र का बहुत आध्यात्मिक महत्व है। यह उन शिक्षाओं पर विचार करने का अवसर है, जो रमज़ान के महीने में लागू की जा सकती हैं, जो नमाज, रोजा और आत्म-नियंत्रण के लिए समर्पित है। रमज़ान का रोजा केवल भोजन और तरल पदार्थ छोड़ने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह आत्म शुद्धि , आत्म चेतना, परहेजगारी, संयम, ईश्वर-चेतना की एक आध्यात्मिक खोज है।
अब्दुल माजिद खान ने बताया कि रमज़ान के रोजे के महत्व पर कुरान में सूरह अल-बकर (2:185) में उल्लेख किया गया है। इसी तरह से ईद मनाने का महत्व कुरान में सूरह अल-अराफ (7:31) में बताया गया है: “हे आदम के बच्चों, हर मस्जिद सजाओ, और खाओ और पीयो, लेकिन अति न करो। निस्संदेह, वह उन लोगों को पसन्द नहीं करता जो अति करते हैं।”
उन्होंने कहा कि हमें ईद पर यह आत्ममंथन और आत्ममंथन करना चाहिए कि रोजा रखने से हमारे पूर्व निर्धारित मकसद पूरे हुए या नहीं। उर्दू के मशहूर शायर व गीतकार गुलज़ार ने एक शेर में कहा है,
तुम चले जाओ तो हम ये सोचेंगे,
हमने क्या खोया हमने क्या पाया। रोजा यह तय करने व मूल्यांकन करने का महत्वपूर्ण पैरामीटर हैं कि हमने जिंदगी का मकसद हासिल किया है या नहीं।
(1) तक़्वा की प्राप्ति (2) संतुलन बनाने के लिए समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों को सशक्त बनाना।
यहां मैं खुद को केवल दूसरे पैरामीटर के मूल्यांकन तक ही सीमित रखूंगा क्योंकि पहला पैरामीटर व्यक्तियों से संबंधित है, जबकि दूसरा सामाजिक प्रभाव को संबोधित करता है।
इस्लाम शांति का धर्म है, और यह हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी शक्ति के भीतर सब कुछ करने का निर्देश देता है कि शांति हमारे समाज पर राज करे। यह उन मुद्दों को संबोधित करने का एक तरीका प्रदान करता है, जो संसाधनों और शिक्षा की कमी के कारण गरीब अनुभव करते हैं।
ने कहा कि समाज के सभी धनी और सक्षम सदस्यों के लिए यह अनिवार्य है कि वे अपनी संपत्ति में से अल्लाह की ओर से निर्धारित एक विशिष्ट राशि अलग रखें और इसे वंचितों को दें। अल्लाह किसी अन्य की तुलना में मानव स्वभाव के बारे में अधिक जागरुक है।
अब्दुल माजिद खान ने कहा कि अल्लाह का शुक्र है ईद-उल-फित्र दुनिया में एकता और विश्वास का त्योहार है। यह समाज की मजबूत भावना, आध्यात्मिक समर्पण और दूसरों के प्रति सहानुभूति के मानवीय मूल्यों की याद दिलाता है। मुसलमानों को ईद-उल-फित्र का महत्व समझ कर और इसकी शिक्षाओं को अपना कर आत्मविश्वास के साथ मानवीय संबंधों को मजबूत करना चाहिए और सभी समाजों में न्याय और प्रेम की भावना बढ़ाना चाहिए।
एक बार फिर से आप सभी को ईद मुबारक।